इमाम हुसैन की कब्र की नकल को उर्दू में ताजिया कहा जाता है। ताजिया सोने, चांदी, लकड़ी, बांस, स्टील, कपड़े और कागज से तैयार किया जाता है। मुहर्रम की 10वीं तारीख को हुसैन की शहादत की याद में गम और शोक के प्रतीक के तौर पर जुलूस के रूप में ताजिया निकाला जाता है। ताजिये का जुलूस इमामबारगाह से निकलता है और कर्बला में जाकर खत्म होता है। ताजिया के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरुआत तैमूर के दौर में हुई। आइये आज इस मौके पर ताजिये का इतिहास जानते हैं....
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